01) प्रस्तावना (Introduction)
02) प्रथम अध्याय (Chapter-01)-(भक्तिमयी सदाचारपूर्ण क्रियाएँ)
03) द्वितीय अध्याय (Chapter-02)-(सेवामय जीवन)
04) तृतीय अध्याय (Chapter-03)-(विरह में सेवा)
05) चतुर्थ अध्याय (Chapter-04)-(भक्ति के सूक्ष्म विचार)
06) पञ्चम अध्याय (Chapter-05)-(श्रीगुरू के पदचिह्नों पर चलना)
07) षष्ठ अध्याय (Chapter-06)-(बहुमूल्य पारमार्थिक शिक्षाएँ)
08) सप्तम अध्याय (Chapter-07)-(श्रील प्रभुपाद की अन्तरङ्ग इच्छा की स्थापना करना)
09) अष्टम अध्याय (Chapter-08)-(स्नेह एवं विरह जनित उद्बोधन)
10) नवम अध्याय (Chapter-09)
11) दशम अध्याय (Chapter-10)
12) एकादश अध्याय (Chapter-11)